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कवि अज्ञेय
कवि अज्ञेय
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
सजिल्द
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पुस्तक क्रमांक : 9460
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आईएसबीएन :9788126728176 |
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10 पाठकों को प्रिय
413 पाठक हैं
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अज्ञेय का नाम हिंदी कविता में एक विवादस्पद नाम रहा है ! खास तौर से प्रगतिशीलों और जनवादियों ने न केवल उन्हें व्यक्तिवादी कहा, बल्कि उनके विरुद्ध घृणा तक का प्रचार किया और इस तरह एक बड़े पाठक-समूह को इस महान शब्द-शिल्पी से दूर रखने की कोशिश की ! सबसे बड़ा अन्याय उनकी कविता के साथ यह किया गया कि उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़े बगैर उनके सम्बन्ध में गलत धारणा बनाई गई और उसे उनका अंतिम मूल्यांकन करार दिया गया !
हिंदी के प्रगतिशील कवियों में सबसे बड़े काव्य-मर्मज्ञ शमशेर थे ! उन्हें अपना माननेवाले लोगों ने यह भी नहीं देखा कि अज्ञेय के प्रति वे कैसी उच्च धारणा रखते हैं ! आज जब देश और विश्व का परिदृश्य बदल गया है और वैचारिक स्तर पर सभी बुद्धिजीवी पूंजीवाद और समाजवाद के बीच से एक नया रास्ता निकलने के लिए बेचैन हैं, अज्ञेय नए सिरे से पठनीय हो उठे हैं ! अब जब हम उनकी कविता पढ़ते हैं, तो यह देखकर विस्मित होते हैं कि बिना व्यक्तित्व का निषेध किये उन्होंने हमेशा समाज को ही अपना लक्ष्य बनाया ! इतना ही नहीं, अत्यन्त सुरुचि-संपन्न और शालीन इस कवि की कविता का नायक भी ‘नर’ ही है, जिसकी आँखों में नारायण की व्यथा भरी है ! उस नर को उन्होंने कभी अपनी आँखों से ओझल नहीं होने दिया और उसकी चिंता में हमेशा लीं रहे !
निराला और मुक्तोबोध के साथ वे हिंदी के तीसरे कवि थे, जो एक साथ महान बौद्धिक और महान भावात्मक थे ! उनके काव्य में आधुनिकता-बोध, प्रेमानुभूति, प्रकृति-प्रेम और रहस्य-चेतना—ये सभी एक नए आलोक से जगमग कर रहे हैं ! प्रसिद्ध आलोचक डॉ. नवल की यह पुस्तक आपको आपकी सीमाओं से मुक्त करेगी और आपकी अंकों के सामने एक नए काव्य-लोक का पटोंमीलन ! आप इसे अवश्य पढ़े !
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